Sunday, February 10, 2019
'विचित्र संयोग..'
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"सपनों का वो पहले करिश्मा अब कहाँ स्थित है..
किसी ने सोचा, किसी ने ढूँढ़ने का यत्न किया, किसी ने कोई रपट लिखवाई..
सब यथावत हो गए..
समय की नोक पर विश्वास का खेत भरपूर कनक देता है..
धरा को एक क्षण पूज लेना, स्वतः ही अद्भुत संगम हो जाता है..
खिलाड़ियों का निर्माण क्षेत्र की आवश्यकता नापता है..
कमती-बढ़ती के उपहास, उपवास की रात्रि का शगुन होते हैं..
पूँजी उत्पादकता से होती है या उपवन की महकास से..
विचारधारा, विकास, निश्चित ही निस्तारित हो जाते हैं..
विचित्र संयोग है, सुगम पगडंडियों का कांकड़ी हो जाना..!!"
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ज़िन्दगी..
2 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (12-02-2019) को "फीका पड़ा बसन्त" (चर्चा अंक-3245) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह ! बहुत ही अच्छा लिखा है आपने। इसके लिए आपका दिल से धन्यवाद। Visit Our Blog Zee Talwara
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