Sunday, August 7, 2022

'रास्ता..'



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"और मुझे लिखने थे किस्से..कभी दर्द के, फ़रेब के, इस्तेमाल किए जाने के, आउटसाइडर ट्रीट किए जाने के, डंप हुए जाने के और यह भी जतलाये जाने के कि "तुम हो ही कौन?? क्या वजूद?? क्या ठिकाना? क्या शौहरत??? क्या रुतबा??"...

पर कुछ तो है ज़िंदगी में, कुछ दोस्त ऐसे मिले, वक़्त की आंधियाँ भी अपना ज़ोर न दिखा सकीं.. 
वो दिलदार, जो शामो-सहर थामे रहे मशाल-ए-हौंसला..
वो बेहतरीन सौदागर, जो रोशनी की सुबह से राब्ता करवाते रहे.. वो मज़बूत दरख़्त, जो छाँव में अपनी सींचते रहे.. 
वो इंद्रधनुषी खजाने, जो मंज़र संवारते रहे..
वो चमकीले सितारे, जो अपनी नरम सेज पर सहलाते रहे..
वो अज़ीज़ मेहमां, जो मेरा ठौर हो गए..

तो भुला दूँ वो जो अपना था ही नहीं कभी..या सहज ही सिमट जाऊँ?? या बाँध दूँ कलाई पर वादे सारे या संग हो जाऊँ??

तुम ही कहो, ए-दोस्त.. किस शज़र जाऊँ..!!"

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--#बस यूँ ही..

Thursday, July 7, 2022

'तुम और तुम..'






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"For the Most Beautiful..

Kindly take note that the word 'Beautiful' is not about the physical beauty, of course, it's rational meaning is beyond that.. Coming to the point. Addressing someone as 'The Most Beautiful' certainly calls for a courageous effort that again is not everyone's cup of tea. 

अंतस के सागर में किसी अपरिचित का प्रवेश अनायास हो, सौभाग्य की बात है.. परंतु असंभव-से इस पड़ाव में एक महत्त्वपूर्ण स्थान दिशा देने वाले का होता है.. उस अमूल्य हितैषी के विचारों में सदैव आपका हित समायोजित रहता है..

आप तो सब जानते हैं, साहेब.. तपस्या की आग में धैर्य अनिवार्य पदार्थ है.. अब जब जलने का, तपने का, मानस सुनिश्चित हो चला, तो प्रयास उसी अनुपात में हो.. है ना??

खैर, साहेब, यह मन दिल सब यहाँ-वहाँ विचर व्यर्थ में अपन ईंधन और समय लुटा रहे.. मुझे तो यूँ भी इन संसाधनों से कोई लगाव नहीं.. जिनसे सरोकार है, वो डटे हैं अपने उपयुक्त स्थान पर..

आप सोचते होंगे, जाने क्या-क्या लिख रही यह लड़की.. सच भी है मन के छल्ले आप हर किसी मोड़ पर नहीं उड़ा सकते.. एक समां, माहौल, महफ़िल बेहद ज़रूरी हो, अपनी बेबाकी की मिसाल देता है..

मुझे आज फिर बह जाने दे, ए-वक़्त.. इक आखिरी दफ़ा, मुझे यूँ खुद को लुटाने दे, लफ्ज़ों की वादियाँ बेतरतीब रहने दे, इस झरने की कल-कल में अरसे से क़ैद बेवज़ह वाली दुश्वारियाँ घुल जाने दे.. उस लाड़ की नमी को मेरे अंतर्मन पर परत जमाने दे.. 

तेरे समंदर का सागर यूँ मेरे घेरे में अपना तंबू लगाए, क्या साहेब, अब ऐसी खुशफहमियों को कभी जीने की मोहलत दिला दीजिए.. 

ये सवाल-जवाब, पसंद-नापसंद, किस्से-कहानियाँ, सबको खुशबुओं से मिलाया जाए.. फिर भर-भर ख़ुमारी के पैमाने उड़ेलें जाएँ.. गुलों की पहली मंज़िल पर चाँदनी की ताज़ी खेप नज़ाकत से परोसी जाए.. और ख़तों की गठरियाँ निचली सतह पर संजोने के लिए रखीं जाएँ.. रंगत के हवाले, ये नादां सारे..!!!

उजास और उमंग के रथ पर नेह फुहार-सा बरसे! मुझे भीग जाना है, इक आखिरी दफ़ा.. के तपो तो कुंदन ही बनना.. ख़्वाहिशों को ज़िंदा ही रखना.. सफर लंबा हो तो क्या, ए-राही.. तन-मन अपना चुस्त ही रखना!!

शुक्रिया, हर उस वज़ह के लिए जो कोशिश है, मुझे मुझसे मिलाने के लिए!!"

--#बस यूँ ही..

Saturday, June 18, 2022

'अलख..'






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"कुछ लिखना चाहती हूँ.. मन के भाव.. क्या सोचते हैं, और क्या होता है.. हमसफर, दोस्त, रिश्ते, नाते, अरमान, एहसास, सबकी एक सीमा है..मियाद है..समय है..

सबको उनको गुण, गहराई, गंतव्य के साथ देखना और संभालना चाहिए.. उपयोग का मापदंड अपनाना बेहद महत्त्वपूर्ण..

यह अलख जगती रहे, आपके मन से मेरे मन तक..!!"

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Saturday, April 16, 2022

'प्रेम का पर्याय'..




एक खत, आपके नाम..

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"एक दोस्त है, खिला-खिला..सुलझा-सुलझा.. अनुभव से लबालब.. 

वक़्त-बेवक़्त जब भी दरवाजे पर दस्तक दूँ, सवालों का पिटारा खोलूँ, उलझनों का ज़िक्र करूँ या यूँ ही आते-जाते आवाज़ दूँ.. उस फूलों के सौदागर का स्नेह भरा पैग़ाम आता ही है..

एक आधारस्तंभ सबकी चाह होती है, फिर चाहे वो रत्न जड़ित हों, शुद्ध स्वर्ण के, या रजत का माप ओढ़े.. अमूल्य अनमोल उत्कृष्ट धरोहर की श्रेणी में आपका स्थान आरक्षित है..

कितना महफूज़ है, उसके दोस्तों का दर्पण.. वो किस्मत वाले..वो हमजलीस..वो हमदम..वो यार..वो दिलदार.. वो खुशनसीब.. सब आपके होने से सुकूँ के छल्ले उड़ाते हैं.. आपके दम से बेहिसाब जंग लड़ने के बाद भी दोगुना हिम्मत से फिर उठ जाते हैं..

यकीं न आए तो देख लीजिए, उनकी आँखों की चमक, चेहरे की रंगत, आवाज़ का जादू.. यह सब आपकी उपस्थिति का साक्षात उदाहरण है.. 

मुश्किलों की शिकन पेशानी पर उभरने नहीं देता.. मन की सिलवटों को करीने से हर सुबह जमाता.. स्वयं के अस्तित्व से मिसाल पेश करता कि जो हो जाए, निर्बाध चलते रहो, तटस्थ रहो.. 

मुझे ऐसे प्यारे दोस्त से प्यार है.. हाँ, अथाह सागर की तरह जितना गहराता जाता हूँ, तुम पल-पल मुझे उभारते जाते हो.. हर दफ़ा नया अध्याय, नया रहस्य, नई ऊर्जा, नई सोच.. तुमसे ही पाता हूँ..

कैसा तिलिस्म है, तुम्हारे साथ का.. किस्सों के हर दौर में ज़िक्र तुम्हारा शामिल रहता है..

तुम मेरे लाइटहाउस हो! (अब यह थोड़ा पुराना हो गया, शायद.. पर यकीं जानिए, मार्गदर्शन के शहर में उम्दा नक्काशी वाले मील के पत्थर हैं, आप!)..

बेहद शुक्रिया प्रिय दोस्त, इस शुष्क मन को सींचने का.. मित्रता के पुष्प महकाने का.. लक्ष्य भेदने के उद्बोधन का.. शुक्रिया, आपके होने का!!"

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Thursday, April 14, 2022

'आहट..'



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"इन तपती दोपहरों में..
तेरे आँचल की छाँव ही चाही..
जितनी दफ़ा, दिल उदास हुआ..
पनाह तेरी ही माँगी..

मिठास छलकाता..
टुकड़ा स्नेह का..
क्षण-क्षण पोसता..
रंग नेह का..

भरपूर रहा, जब भी मिला..
संग्रहित उत्साह भंडार खिला..

संदर्भ का संदेश..
शब्दकोष तलाशे..
पलाश पुष्प..
उमंग बढ़ाते..

देखो, गुलमोहर चहकने लगा..
इन तपती दोपहरों में..
अंतस महकने लगा..!!!

तुम आहट हो, मेरी!!"

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Monday, March 7, 2022

'वो..'


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"वो खफ़ा है..
इन दिनों..

और..

मैं लापता..!!"

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Friday, February 25, 2022

इश्तिहार..



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"जैसे इश्तिहार था.. देखा..सुना..पढ़ा..
मन उठा..चला..सिमटा हृदयताल पर..

तुम ख़्वाब मानिंद सुर्ख़ मुलायम अज़ीज़..!!"

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Saturday, January 29, 2022

'तुम..'



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"आज ख़्यालों ने जी भर जीने का फैसला किया.. दिन भर की भागदौड़ ने अपनी भागीदारी समय की स्लेट पर गढ़नी चाही.. मोहब्बत के इश्तिहार भी खूब बाँटें.. पर आप जानते हैं, साहेब, वजूद के मौजूद दस्तावेजों ने हर दफ़ा एक ही अर्ज़ी लगाई - "आओ जो इस तरफ, तफसील से आना.. बैठो जो पास, अशआर साथ लाना.. तिलिस्म तुमसे माँगता मेरे सवालों के जवाब, तुम बेतकल्लुफ मेरा किरदार हो जाना"..

किसी का मरगज़ होने के लिए, खुद से बेगाना होना पड़ता है.. 

सच के शहर में सारे मकां बेरंग निकले..

तुम वो बटन हो, जिसे मखमली बक्से में सहेज मुसाफिरी करूँ तो तारीफ के सुर यहाँ तक गूँजेंगे..

तुम गुलाबी कागज़ वाला हस्तलिखित स्तंभ, मेरे होने का आधार!"

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Tuesday, January 11, 2022

'आरज़ू..'





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"हम क्या सोचते हैं और क्या होता है.. मौसम के खेल में तराज़ू बिकता है..

लोगों का ईमान बदलते वक्त नहीं लगता..और इल्ज़ाम की तारीफ आपके कूचे पर डेरा जमा, मौज़ वाले छल्ले उछालती है..

इंसान करे भी तो क्या, जाए तो कहाँ.. हर उम्र छाले..हर राह पथरीली..हर किस्सा तंज़..हर एहसास फरेब..

रूह किसे अपना कहे..किसकी इबादत करे..किसके नाम पैगाम-ए-दिल भेजे..

तकदीर की तासीर भी अजब निकली, रंग के पैमाने फीके रहे..

चलता रहे कारोबार..खुशियाँ नज़ीर हों..सलामत रहे आरज़ू..और महकता रहे नज़रों का काफ़िला.. क्योंकि कोई शाम रुकती नहीं.. शब की बादशाहत भी चलती नहीं..

लबाबल रहे, मेरे होने का कलाम!"

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Monday, January 10, 2022

तुम!



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"सुनो.. तुम अथाह हो, मेरे अंतस के सागर.. तुम विराट हो, मेरे आकाश के पर्वत.. तुम अविरल हो, मेरे अध्याय के प्रमाण.. तुम संगीत हो, मेरे कण-कण के राग..

तुम सौभाग्य के परिचायक रहना!"

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