Tuesday, February 2, 2010
'कभी तड़पाया करो..'
...
"शब का खौफ बिखेरती हुई..
उसकी यादें..
टकरा गयीं..
जेहन से..
इलज़ाम लगे..
एहसासों के परिंदों पे..
बिन बुलाये..
क्यूँ आते हो..
कभी तो..
नीली सिगड़ी बरसाया करो..
अंजुमन से निकल..
मुझे कभी तड़पाया करो..!"
...
8 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
इल्जाम लगे अहसास के परिंदों पे
बिन बुलाये क्यूँ आते हो ..
बहुत सुन्दर रचना .
sundar rachna..
तड़पन के लिए तड़प - वाह वाह बहुत खूब
बहुत बढिया!!
धन्यवाद 'विचारों का दर्पण' जी..!!
धन्यवाद अरशद अली जी..!!
धन्यवाद ह्रदय पुष्प जी..!!
धन्यवाद परमजीत बाली जी..!!
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