"सीमा का उलंघन हुआ है.. जब-जब.. बही है.. एक नयी धारा.. मिला है.. एक नया धरातल.. ना समझ सकोगे.. कभी.. ह्रदय की अनुभूति.. दर्पण की परछाई.. और.. ओस के कोमल अश्रु..!"
"माज़ी के पन्नों में.. निकले हैं.. गुल बेहिसाब.. दफनाये थे.. रिवायतों के खौफ से.. सुलगते जज़्बात.. दर्द से सरोबार.. कुछ सख्त लिबास.. कुछ रंगीं मिजाज़..