
कुछ वर्षों पहले लिखी थी..बिना कोई संशोधन प्रेषित कर रहे हैं..
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"बचपन सहेजकर रखा था..
एक पुराने बक्से में..
कुछ खिलौनें..कुछ गुड़िया..
कोई कश्ती..कोई गदा..
कुछ तीर-कमान..कुछ आँसू की पुड़िया..
कोई ताबीज़..कोई धागा..
कुछ भूली-बिसरी यादें..
कुछ गुलमोहर के फूल..
कुछ इमली के बीज..
कुछ बगीचे की धूल..
थोड़ी मासूम-सी हाथापाई..
कुछ पुराने सिक्के..
कुछ गुड़ के चक्के..
कुछ सरसों और मक्के..
थोड़े पुराने ख़त..
कुछ तितालियों के रंग..
कुछ दरिया का पानी..
कुछ चबूतरे तंग..
कुछ खिलखिलाती तस्वीरें..
कुछ कुरते के बटन..
कुछ जूतों की तस्में..
कुछ यारों के टशन..
दीवाली की सफाई में..
सब बेच दिया है..
सुना है..
मार्केटिंग वाले..
सब एक्सेप्ट करते हैं..
इस फेस्टिव सीज़न में..!"
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