Saturday, October 23, 2010
'तुम्हारी कलम..'
...
"बेख़ौफ़ घूमता हूँ..
कूचे पे सनम..
ना मिलो..
ना देखो..
पैगाम भेजो..
राहगीरों के संग..
अश्कों में लिपटी..
तुम्हारी मखमली चादर..
खुशबू से तरबतर..
तुम्हारी कलम..
और..
चाहत से रंगरेज़..
मेरी रूह..!!"
...
Labels:
मेहमां यादें..
2 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
सुभानाल्लाह !!!
धन्यवाद डॉक्टर साब..!!
Post a Comment