Sunday, November 21, 2010
'मसरूफ़ियत के फ़साने..'
...
"गुल सज़ाने हैं कई..
अश्क मंज़ाने हैं कई..१..
फ़क़त..जुर्म हैं साँसों का..
एहसास रज़ाने हैं कई..२..
शोखी निस्बत मौसम..
मसरूफ़ियत के फ़साने हैं कई..३..
नज़रें बेज़ुबां..सिरहन बेनक़ाब..
अदा के खज़ाने हैं कई..४..
क़त्ल-ए-आम दरिया हुआ..
कुर्बानी के तहखाने हैं कई..५..
चिकने ग़म-ए-हिजरां..
रफ्ता-रफ्ता गलाने हैं कई..६..!!"
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ग़ज़ल..
5 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
क़त्ल-ए-आम दरिया हुआ
कुर्बानी के तहखाने हैं कई
कितनी बारीक है भाव सम्प्रेषण की यह बानगी .. बहुत सुन्दर
धन्यवाद वर्मा साब..!!
... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।
धन्यवाद संजय भास्कर जी..!!!
rafta rafta.. bahut khoob
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