Friday, February 25, 2011
'आशियाना-ए-ख्वाब..'
...
"बुनता हूँ..
आशियाना-ए-ख्वाब..
गेसुओं से झाँकतीं..
सुर्ख निगाहें..
करती हैं..
बरबस सवाल..
थाम लेते गर..
मुसलाधार बारिश..
कंपकंपाती रात..
लबरेज़ अरमान..
कहते अपनी जुबां..
तन्हा हूँ..
महफ़िल है बेज़ार..
समा जाओ..
चिराग-सा रोशन..
मेरे गुल-ए-गुलज़ार..!!"
...
9 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
धन्यवाद सत्यम शिवम जी..!!
वाह!बहुत ही बढ़िया लिखा आपने.
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सूरज से मैंने कहा....
मनोभावों को खूबसूरती से पिरोया है। बधाई।
बहुत ही बढ़िया लिखा आपने| धन्यवाद|
Accha likhte hain.samayabhav ke karan pahle aapke site pe nahi aa saka.Afsaos hai.Kuchh likhne ki koshish main bhi karta...angadhi kavitayen padhne ka shauk ho to mere site pe vi kabhi vicharan karein.
धन्यवाद यशवंत माथुर जी..!!
धन्यवाद डॉक्टर साहिबा जी..!!
धन्यवाद Patali - The Village जी..!!
धन्यवाद विजुय रोंजन जी..!!
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