"चलो..
रूह की सीमा बनाते हैं..
कुछ लकीरें तुम खेंचना..
कुछ हम उखेड़ेंगे..
ना मुरझा पाये जो गुल..
रूमानी-इतर समझ..
जिस्म पर ओढ़ लेना..
ना जाने..
मुलाकात फ़क़त ना हो..!!!"
"मखौल उड़ाता है..
जग सारा..
मदमस्त रहता हूँ..
शैय्या पर अपनी..
घाँव मरहम से भरे हैं कभी..??
विचार धुंधलाता हूँ..
असंमज में व्यतीत होती..
जीवन की अंतिम पंखुड़ियां..
जाने दो..
विषम परिस्तिथियाँ..
परस्पर प्रेम और दया के..
मिलते रहें अवसर..!!"
"बरसती हैं जब कभी..
यादों की बौछारें..
दामन बाँध देता है..
हसीं लम्हों की बरसाती..
काश..
लगा पाते एहसासों की रस्सी..
और..
वादों की गाँठ..
अजीब है..
बारिश की ये तूफानी अदा..!!!"