Monday, June 27, 2011
'अदा-ए-महबूब..'
...
"उलटती हूँ..
जब कभी..
शब की चादर..
रंग की चाहत..
तुम से जुड़ा..
हर लफ्ज़..
हर लम्हा..
करीने से..
खुद-ब-खुद..
लचकता है..
जाने क्या..
नशा-ए-फुरकत..
गिरफ्त मज़बूत..
बेक़रार निगाहें..
धडकनें महफूज़..
फ़क़त..
अदा-ए-महबूब..!!"
...
Labels:
दास्तान-ए-दिल..
6 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
सुन्दर रचना ।
साथ ही मेरी कविता देखने लिए धन्यवाद । मेरे निजी ब्लॉग में भी आएँ और ठीक लगे तो जरुर फोलो करें ।
Www.pradip13m.blogspot.com
बहुत ही नजाकत भरी हुई है हर अदा......बेहद ख़ूबसूरत.....
bhut hi khubsurat shabd rachna...
धन्यवाद प्रदीप कुमार साहनी जी..!!
धन्यवाद वन्दना महतो जी..!!
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