Saturday, July 23, 2011
'शहनाई-ए-मोहब्बत..'
...
"बेशक यकीं ना होगा..
शहनाई-ए-मोहब्बत का..
*फ़ासील-ए-शहर-ए-रूह..
ओढ़े **बिल्लौर की चादर..
हाल-ए-दिल करती बयाँ..
काश..
पढ़ पाते..
दिल की किताब..!!!"
...
*फ़ासील-ए-शहर-रूह = रूह के शहर की दीवारें..
**बिल्लौर = काँच..
Labels:
दास्तान-ए-दिल..
6 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
आप भी शब्दों की खूब जादूगिरी करतीं हैं.
'शहनाई-ए-मोहब्बत' से ऐसा लग रहा है
जैसे मोहब्बत की शहनाई ही बज उठी हो.
वाह!एक एक शब्द बोल रहा है.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आपकी सुन्दर टिपण्णी के साथ दर्शन हुए,इसके लिए भी आभारी हूँ.
यूँ ही संवाद बनाये रखियेगा.
bhaut hi khubsurat abhivakti...
धन्यवाद राकेश कुमार जी..!!
धन्यवाद सागर जी..!!
उत्तम भावों को अभिव्यक्त करती सुंदर कविता।
धन्यवाद संजय भास्कर जी..!!
Post a Comment