Monday, July 25, 2011

'मंज़र-ए-तन्हाई..'


एक प्यारे-दोस्त का दिल अनजाने में दुखा दिया..उन के लिये..उन के नाम..एक गुज़ारिश..


...


"दुखा दिल तेरा..
रोया मैं बहुत..
ना समझ सका..

रूह जो छिल गयी..
आँसू जो जम गए..

वहशत का हर लम्हा..
मंज़र-ए-तन्हाई..
आलम-ए-जुदाई..

गुनाह-ए-जुर्म..
हो सज़ा अता..

बेदखल यादों से..
बेताल्लुक जज्बातों से..!!"


...

7 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

संजय भास्‍कर said...

बहुत सुंदर शब्द ..जितना पड़ो मन नही भरता

Nidhi said...

खुदा करे...तुम्हारा वो दोस्त तुम्हारी गुजारिश मान लें...तुम्हें दिल से माफ कर दे...
कोई भी किसी को कभी यादों से बेदखल न करे...
बढ़िया है....

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद संजय भास्कर जी..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद दी..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद सुषमा 'आहुति' जी..!!

Amrita Tanmay said...

बेहतरीन रचना

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद अमृता तन्मय जी..!!!