आपके लिये दी..
...
"संघर्ष के काल में..
अपनत्व के अकाल में..
तुम ही थे..
हर क्षण..
बाँधते..
तराशते..
सँभालते..
कैसा बंधन है..
निस्वार्थ पवित्र सुंदर..
बिन स्पर्श पाती हूँ..
तुम्हें समीप..
ऐसा माधुर्य..
ऐसा स्नेह..
अमूल्य अद्भुत..
अभिभूत हूँ..
जीवन की इस कठिनतम बेला पर..
करती ह्रदय से प्रकट आभार हूँ..!!"
...
6 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
जो बंधन निस्स्वार्थ हो..उस बंधन में फिर आभार प्रकट क्या करना ....
yah swikriti - samman hai , bahut hi badhiya
सुन्दर सुकोमल भाव..
आभार प्रकट करना हमारी विनम्रता दर्शाता है..
शुभकामनाएँ.
धन्यवाद दी..!!
धन्यवाद रश्मि प्रभा जी..!!
धन्यवाद विद्या जी..!!
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