Monday, March 5, 2012

'उलझते मोती..'

...


"अंतर्मन की लकीरें..
उलझते मोती..
अंबर फैलता व्यापार..
समेटो दुखों की गठरी..
ना रहा अब कहीं..
कोई सच्चा खरीददार..!!"

...

2 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

Shikha Kaushik said...

great post .YE HAI MISSION LONDON OLYMPIC

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सार्थक प्रस्तुति!
होलिकोत्सव की शुभकामनाएँ!