Thursday, July 12, 2012
'अजीब-सा चन्द्र..'
...
"हथेली पर तुम्हारे..
अजीब-सा चन्द्र..
शीतलता की बजाय..
देह में मेरी..
भर देता है गर्माहट..
क्यूँ अक्सर..
ह्रदय की धमनी..
बदल देती है..
नियति..
और
पलायन होता है..
'नीच' से 'उच्च' की ओर..!!"
...
Labels:
दास्तान-ए-दिल..
4 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
....बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ हैं शुभकामनायें
सुन्दर पंक्तियाँ !!
धन्यवाद संजय भास्कर जी..!!
धन्यवाद ऋतू जी..!!
Post a Comment