Thursday, April 25, 2013

'ख़्वाब..'



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"कल रात ख़्वाब की चादर ओढ़े तुम मेरी चादर की सूत बन लिपटी रहीं.. अपने शहर से मेरे शहर का सफ़र..दुनिया की नज़रों से छुपते-छुपाते..मुझ तक आयीं तुम..!!!

ना जाने किन ख्यालों में खो गयीं थीं तुम्हारी उदास आँखें..मैं ढूँढता रहा अपनी कार में तुम्हें..!! बरबस बहते ही जा रहे थे..तुम्हारी काली आँखों से बेशुमार मोती..कार के डैशबोर्ड पर रखे टिश्यू पेपर बॉक्स से एक सफ़ेद टिश्यू निकाल तुम्हें जैसे ही दिया..तुम बिफर गयीं..जैसे एक बिजली गिर गयी थी मुझ पर..!!! इतना कमजोर और बेबस कभी महसूस नहीं किया था ख़ुदको..!!

क्यूँ ज़िन्दगी ऐसे मुकाम पर ले आती है, जहाँ हमारा सबसे प्यारा दोस्त सामने हो और उसे संभाल भी नहीं सकते..बांहों में भी नहीं भर सकते..!!! तुम्हारी ख़ामोशी मुझे चीर रही थी..सहला ना सका तुम्हारे ज़ख्म, जल गया मेरे होने का दंभ.. कितना बैगैरत..संगदिल..

दफ़अतन..ख़्वाब टूट गया..और किरच-किरच बिखर गए सपने..!!!"

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--सुबह से बहुत मिस कर रहा था तुम्हें..!!! कर सकता हूँ ना..??

4 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

Jyoti khare said...

prem ka maheen ahsas
sunder prastuti

aagrah hai mere blog main sammlit hon

nishalspace said...

bechani......

sukoon :)

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद ज्योति खरे जी..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद प्रशांत कुमार जी..!!