Saturday, April 27, 2013

'इक शब..'




...

"किरच-किरच टपकती रही..
हर्फ़ से सनी धूप..

तुम सब जानते थे..
मेरा खालीपन..
मेरी वहशत का जिस्म..

क्यूँ बुलाते थे उँगलियों की घुटन को..
इतने करीब कि फिसल जाती थी..
मेरी बेबसी उन पन्नों पर..

बमुश्किल समेटा था..
उस रोज़..
स्याह शाम का अल्हड़ मंज़र..

तेरी छुअन..
मेरी रूह..
और..
इक शब..
वहशत की..

याद रखोगे ना..
मेरी इबादत..
मोहब्बत की..!!"

...

13 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बेहतरीन ।

ANULATA RAJ NAIR said...

अहा...बहुत सुन्दर!!!

अनु

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद संगीता आंटी..

priyankaabhilaashi said...


धन्यवाद ब्लॉग बुलेटिन जी..
आभारी हूँ..

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद अनु जी..!!

Tamasha-E-Zindagi said...

लाजवाब!!!

कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page

दिगम्बर नासवा said...

वो वहशत भरी इक शब् ही होती ही जो किताब भर जाती है मुहब्बत की ...
लाजवाब ...

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद दिव्या शुक्ला जी..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद दिगम्बर नासवा जी..!!

कालीपद "प्रसाद" said...


बहुत खूबसूरत
डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
latest postजीवन संध्या
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Darshan jangra said...

बेहतरीन

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद दर्शन जी..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद तुषार राज रस्तोगी जी..!!