Saturday, February 15, 2014
'गोलार्द्ध की मियाद..'
...
"लम्बी रातें..
बेशुमार बातें..
बेचैन अलाव..
बुला रहे सारे..
चले आओ..
चले आओ..
के तुम बिन सिलवटें तड़प रहीं..
तकिये के लिहाफ़ साँसें लौटा रहे..
इतर की खश्बू मचल रही..
ऑलिव ऑयल बिफ़र रहा..
पोरों में सुलह करा दो..
गोलार्द्ध की मियाद बता दो..
जानां..!!"
...
--मोहरें तलाशतीं वज़ूद..
Labels:
रूमानियत..
2 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
बहुत खूब ... गहरा एहसास जगाते हुए ...
धन्यवाद दिगम्बर नासवा जी..!!
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