Monday, February 24, 2014

'ज़ुल्मत का साया..'







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"हर तरफ फैला अँधियारा..
उजाले की नहीं छाया..

क्यूँ हर नफ्ज़ ऐसा हुआ..
माज़ी मुझे छोड़ आया..

फिरता लकीरों-सा बेनिशां..
बहता ज़ुल्मत का साया..

न रदीफ़..बहर..न मतला..
दामन मेरा किसने सजाया..!!"

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6 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

Parul Chandra said...

बहुत खूब...

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद पारुल चंद्रा जी..!!

दिगम्बर नासवा said...

बिना बहार भी तो होती है नज़्म ...
गहरे भाव ....

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद दिगम्बर नासवा जी..!!

Himkar Shyam said...

बहुत खूब, भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद हिमकर श्याम जी..!!