Friday, April 4, 2014

'इनायत का कलाम..'






...

"जाने कब क्या समझ सकूँगी..
जो न समझी परतों की परत..
गम-ए-दरीचा कैसे समझ सकूँगी..

कहते वाईज़..इनायत तुमपे भी होगी..
जो न लिखा..वो कैसे समझ सकूँगी..

होने लगे फ़ीके..लफ्ज़ मेरे..इस कदर..
दर्द-ए-जानिब दर्द..अब कैसे समझ सकूँगी..

मिटा दो..नामों-निशां..रूह से अपनी..
पाठ-ए-मोहब्बत..कैसे समझ सकूँगी..

लिख रही हूँ..जाने क्या-क्या..सच है..
रदीफ़..मतला..बहर..कैसे समझ सकूँगी..!!"

...

--आपकी इनायत का कलाम कलम हो गया..

16 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद यशोदा अग्रवाल जी..!!!

सादर आभार..!!

Mithilesh dubey said...

लाजवाब। जितनी बार आपको पढता हूँ उतनी बार अलग अनुभूति होती है।

Onkar said...

सुन्दर

संजय भास्‍कर said...

सुन्दर भाव और अतिसुन्दर रचना

Yashwant R. B. Mathur said...

कल 06/04/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक एक बार फिर होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद ओंकार जी..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद यशवंत जी..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद राजीव कुमार झा जी..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद मयंक साब..!!

सादर आभार..!!

Onkar said...

सुन्दर रचना

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद ओंकार जी..!!

priyankaabhilaashi said...
This comment has been removed by the author.
Vaanbhatt said...

बहुत सुंदर रचना...

दिगम्बर नासवा said...

बहुत खूब ... लाजवाब रचना ,,,

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद Vaanbhatt जी..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद दिगम्बर नासवा जी..!!