Friday, July 4, 2014

'माँ..'





...

"पा प्रकाश..तुमसे..
पोषित होता जाता हूँ..
खिल जाते हैं..
भीतर के पुष्प..

माँ..
तुम तरु हो..
मेरा सामर्थ्य..
मेरी शक्ति..
मेरा ज्ञान..
मेरे मूल्य..
मेरा संसार..

तुम ही हो..
मेरा जीवन..!!

...

5 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

संजय भास्‍कर said...

सचमुच माँ दुनिया में होती ही है सबसे निराली... उसकी उपमा कहाँ ... बहुत सुन्दर रचना...

संजय भास्‍कर said...

आपने अपने मन के साथ-साथ सबके मन की बात इस कविता में कह दी.अति-सुंदर.

Parul Chandra said...

Bahut sunder kriti...

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद संजय भास्कर जी..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद पारुल जी..!!