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"रंगों के अपने रंग दिखने लगे..
मुहब्बत हमसे रक़ीब करने लगे..१..
चाहत उल्फ़त को थी..थोड़ी ज्यादा..
जिस्म पे..रूह के निशां मंजने लगे..२..
खैरियत कैफ़ियत वाली..जुदा रहे..
नक़ाब चेहरे पे..हबीबों के लगने लगे..३..
कम लिखता हूँ..हाले-दिल..बारहां..
आमद क़द्रदानों की..कूचे सजने लगे..४..!!"
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--नशा-ए-वीकेंड..