Wednesday, July 1, 2015
'ज़ीरो-वन..'
...
"जीरो..वन का खेल है सारा..
जैसे उगता सूरज..दिखता न्यारा..
जीरो के आगे जब लगता वन..
देखो..बन जाता वो सबका प्यारा..
वन के बाद जब लगते हैं ज़ीरो..
दुनिया चाहे..बन जाए ये हमारा..
खेल खेलते दोनों मिल कर..
आगे इनके..हर कोई हारा..
वन बोला, 'चल साथ चलेंगे'..
ज़ीरो ने झट से ऑफर स्वीकारा..
दोस्ती एकदम पक्की वाली..जैसे..
मैं-दीदी..माँ की आँखों का तारा..!!"
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हल्का-फुल्का..
10 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 2 - 06 - 2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2024 में दिया जाएगा
धन्यवाद
हार्दिक धन्यवाद..दिलबाग विर्क जी..!!
बहुत सुन्दर
शून्य से बना ये ब्रह्माण्ड
हार्दिक धन्यवाद..कविता रावत जी..!!
हार्दिक आभार..सुमन कपूर जी..!!
बहुत सुंदर....शून्य से ही असंख्य होता है
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (03-07-2015) को "जब बारिश आए तो..." (चर्चा अंक- 2025) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब
धन्यवाद रश्मि शर्मा जी..!!
धन्यवाद तुषार रस्तोगी जी..!!
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