Monday, February 29, 2016

'दौड़-ए-ज़िन्दगी..'


...

"वक़्त की आँधी थी..
औ' मैं अकेला..
चलने को मजबूर..
कदमों का रेला..

उठा दिल..
सहलायी रूह..
समेट अपने..
एहसासों का ठेला..

मुमकिन कहाँ..
मसरूफ़ियत यहाँ..
फ़ैला हर दश्त..
अरमानों का मेला..

बिछड़ गए..
यार मेरे..
दौड़-ए-ज़िन्दगी..
पेंच ख़ूब खेला..!!"

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