Wednesday, July 26, 2017
'रजनीगंधा ..'
...
"रजनीगंधा का फूल..
अब तक महकता है..
उस उर्दू-हिंदी डिक्शनरी में..
हर बार उठाती हूँ..
शेल्फ से जब..
उंगलियाँ ख़ुद-ब-ख़ुद..
महसूस कर लेतीं हैं..
रूह तुम्हारी..
सफ़ेद पंखुरियाँ अब सफ़ेद कहाँ..
तेरी सौंधी खश्बू..
रेशे-रेशे में उतर आई है..
छप गयी है उस पन्ने पे..
तस्वीर तेरी..
पोर से बह चली हरारत कोई..
तेरी गिरफ़्त के जाम..
सुलगा रहे..'कैफ़ियत के दाम'..
लिखना-पढ़ना काफ़ूर हुआ..
मिलन जब उनसे यूँ हुआ..
हर्फ़ भुला रहे..राग़ सारे..
लुटा रहे..'हमारे दाग़' सारे..
शिराओं के ज़ख्म उभरने लगे..
तेरी छुअन को तरसने लगे..
हरी कहाँ अब..रजनीगंधा की डाली..
बेबसी दिखा रही..अदा निराली..
चले आओ..जां..
कागज़ को छू..
मुझे ज़िंदा कर दो..
भर दो..
महकती साँसें..
चहकती आहें..
पोर का सुकूं..
और..
इसकी सिलवटों में..
सिलवटें हमारी..!!"
...
--तुमको भी बहुत पसंद है न..रजनीगंधा की सौंधी सुगंध..
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बस यूँ ही..
8 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (28-07-2017) को "अद्भुत अपना देश" (चर्चा अंक 2680) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर
बहुत सुन्दर कोमल अभिव्यक्ति है , रजनीगंधा पोर पोर में कोमल सुगंध
बहुत ही खूबसूरत अल्फाजों में पिरोया है आपने इसे... बेहतरीन
सादर आभार, मयंक साब.. देरी के लिए क्षमा..
सादर धन्यवाद, सु-मन कपूर महोदया जी..देरी के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ..
सादर धन्यवाद, Shashi Purwar महोदया जी..देरी के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ..
सादर आभार, संजय भास्कर जी..देरी के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ..
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