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"खुद ना कर पाए..दूसरों से उलझते हैं..
जाने किस कश्ती की..राह में उछलते हैं..१
चाँदनी के प्याले से झाँकते रहे..लम्हे..
यादों से लड़ते हुए..आँख में मचलते हैं..२
सुराही रंगों में डूबी..रखी थी सिरहाने..
बेवज़ह..जवां लफ़्ज़ों से चादर बदलते हैं..३
गुज़ारिश माज़ी की..बारिश में आफ़ताब..
अजीब फ़रमान..आह..रूह से फिसलते हैं..४..!"
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