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"आती है याद जब भी...
नम हो जातीं हैं आँखें..
मिलता हूँ जब भी..
खिल जातीं हैं बाँछें..
त्याग की सूरत हो तुम..
मन-मंदिर की मूरत हो तुम..
बौना हो जाता हूँ..
वात्सल्य के पर्वत के आगे..
माँ..
तुझको नमन..
तुझको अर्पण..
सारी उपलब्धियाँ..!"
...
6 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
ek achchhi rachna padhne ko mili
बहुत सुन्दर रचना है माँ से बढ कर कोई देव नहीं कोई धर्म नहीं शुभकामनायें
बहुत सुन्दर रचना!! बधाई\
भावपूर्ण रचना...
आप सब का बहुत-बहुत धन्यवाद..!!
sach me ma ke upar jo bhi lika hai vo padkar ma ki yaad aayi. really very nice written
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