Thursday, December 31, 2009
अजनबी..
...
"नज़रें टकराईं..
कसक उठी..
साँसें लड़खड़ाईं..
लहर उठी..
रूह थपथपाई..
अलाव उठी..
अजनबी हमनवां हुए..
कुछ..इस तरह..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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12/31/2009 10:25:00 PM
2
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बस यूँ ही..
अजीब फ़रमान..
...
"खुद ना कर पाए..दूसरों से उलझते हैं..
जाने किस कश्ती की..राह में उछलते हैं..१
चाँदनी के प्याले से झाँकते रहे..लम्हे..
यादों से लड़ते हुए..आँख में मचलते हैं..२
सुराही रंगों में डूबी..रखी थी सिरहाने..
बेवज़ह..जवां लफ़्ज़ों से चादर बदलते हैं..३
गुज़ारिश माज़ी की..बारिश में आफ़ताब..
अजीब फ़रमान..आह..रूह से फिसलते हैं..४..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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12/31/2009 09:15:00 AM
9
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Wednesday, December 30, 2009
मासूमियत..
...
"आँखों से सुनते रहे..
उनके इशारे..
नजाकत से लिपटे रहे..
उनके इरादे..
मासूमियत..
रग-रग से..
झाँकती रही..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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12/30/2009 05:37:00 AM
6
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अभी-अभी..
...
"रूहानी हुआ है मंज़र..
अभी-अभी..
कश्ती का रुख बदला है..
अभी-अभी..
किश्तों में जीते रहे हैं..
हरदम..
मुस्कुराओ..
गुलिस्तान खिला है..
अभी-अभी..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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12/30/2009 05:06:00 AM
4
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Tuesday, December 29, 2009
'इक मासूम जिद..'
...
जिद है हमारी..
सूरज चाहिए अब..
तारे की पच्छी..
यादों का मौसम..
गुलमोहर की आगोश..
रेत के घरोंदें..
सरसों के खेत..
बैलगाड़ी की सवारी..
वो कच्चे आम..
वो मीठी इमली..
वो सौंधी मिटटी..
होली के रंग..
रामलीला का रावण..
जन्माष्टमी का मेला..
काका की जलेबी..
ताऊ के लड्डू..
चाचा का वो..
मलाई वाला दूध..
काकी का हलवा..
चाची का अचार..
ताई के गुँजे..
क्या दे सकोगे..
मेरा गुजरा बचपन..
वो खिलखिलाती हँसी..
सावन के झूले..
माँ का आँगन..
मिश्री-सी लोरी..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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12/29/2009 02:27:00 AM
5
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Monday, December 28, 2009
क्षमा-प्रार्थी..
...
"आँचल की छाँव को..
कारागार मानता रहा..
हर कर्म को..
तेरा फ़र्ज़ मानता रहा..
माँ..
क्षमा करना..
सब अपराध..
करता रहा जीवन भर..
तेरा उपहास..
क्षमा-प्रार्थी हूँ..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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12/28/2009 07:27:00 AM
3
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Saturday, December 26, 2009
...
"तुम भी ना..
लकीरें हिला गए..
जिस्म सुलगता गया..
तस्सल्ली खिला गए..
आशियाँ लुटता गया..
जाम पिला गए..
साँसें बिफरती रहीं..
दूरियाँ मिटा गए..
आसमान रोता रहा..
स्याही मिला गए..
आज फिर..
शब ढूँढती रही..
अरमां लिटा गए..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
12/26/2009 11:41:00 PM
3
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माँ..
...
"आती है याद जब भी...
नम हो जातीं हैं आँखें..
मिलता हूँ जब भी..
खिल जातीं हैं बाँछें..
त्याग की सूरत हो तुम..
मन-मंदिर की मूरत हो तुम..
बौना हो जाता हूँ..
वात्सल्य के पर्वत के आगे..
माँ..
तुझको नमन..
तुझको अर्पण..
सारी उपलब्धियाँ..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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12/26/2009 01:39:00 AM
6
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माँ..
Friday, December 25, 2009
कुछ पुरानी यादें..
...
"सुना था..
होतीं हैं..
परियों की कहानियाँ..
देखा तो..
याद आयीं रवानियाँ..
गुनगुनाती हुई..
मुस्कुराती हुई जवानियाँ..
क्या मिलती हैं..
अब तलक..
बादलों को ओढ़े..
तारों की निशानियाँ..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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12/25/2009 02:10:00 AM
4
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Thursday, December 24, 2009
हम-ज़लीस..
...
"पहली सोच..
आखिरी पड़ाव..
अनमोल..
तहखाना..
ख़जाना..
सौगात..
तस्वीर..
रूह..
इबादत..
ईमान..
अक्स-ए-ज़िन्दगी..
खुशबू का बिछौना..
हम-ज़लीस..
तेरा शुक्रिया..!"
...
"पहली सोच..
आखिरी पड़ाव..
अनमोल..
तहखाना..
ख़जाना..
सौगात..
तस्वीर..
रूह..
इबादत..
ईमान..
अक्स-ए-ज़िन्दगी..
खुशबू का बिछौना..
हम-ज़लीस..
तेरा शुक्रिया..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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12/24/2009 02:24:00 AM
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हम-ज़लीस/परम-प्रिय मित्र..
Wednesday, December 23, 2009
माँ..तुझको अर्पण..
...
"जब-जब थका हूँ..
आँचल में छाँव मिली..
जब-जब उठा हूँ..
वजूद को पहचां मिली..
जब-जब चला हूँ..
फिज़ा को अवाम मिली..
जब-जब चढ़ा हूँ..
शोलों को आगाज़ मिली..
माँ..
तुझको अर्पण..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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12/23/2009 04:34:00 AM
7
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माँ..
'निमंत्रण की राह में..'
ये हमने अपने एक 'ऑनलाइन मित्र' की सहायता करने के लिए लिखी..उनकी एक सहकर्मी का विवाह सुनिश्चित हुआ है और वो भोज देने में थोड़ा हिचकिचा रहीं हैं.. बस उनको एक पत्र भेज दिया गया..
...
"परम आदरणीया..
सुश्री सुष्मिता जी..
सर्वप्रथम, आपको आगामी जीवन की हार्दिक बधाईयाँ.. आपके मित्र-गण आपको इस उपलक्ष्य में एक सुंदर उपहार देना चाहते हैं..किन्तु वो आपके द्वारा दिए गए निमंत्रण के पश्चात ही संभव हो पायेगा..!!
आपकी ओर से आयोजित भोज के निमंत्रण की राह में..
आपके मित्र-गण..
आपके हितैषी..!!"
...
आप सभी के विचारों की राह तकते हुए..
..
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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12/23/2009 03:11:00 AM
0
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हास्य..
माँ का आँचल....
...
"ता-उम्र साथ चलतीं रहीं..उसकी दुआएँ..
बन कर साया..गम झेलती रहीं..उसकी दुआएँ..१
बलाएँ सब मोड़ती रहीं..अपनी अदाएँ..
सबब-ए-ज़िन्दगी सिखाती रहीं..उसकी दुआएँ..२
संजो रहमत के मोती..शफ़क़त महकाती..
गम के तहखाने समेटती रहीं..उसकी दुआएँ..३
कितना मासूम है..उसका आँचल..
तीर सब हटाती रहीं..उसकी दुआएँ..४..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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12/23/2009 12:11:00 AM
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माँ..
Monday, December 21, 2009
तीर-ए-सादगी..
...
"चाहत के रंग बिखेरते जाते हो..
ख़्वाबों में फ़क़त आते-जाते हो..१
महबूब हैं..पढ़ लिया हाल-ए-दिल..
हर नफ्ज़ रूह में पनपते जाते हो..२
जज्बातों को रौशन कर देगा साया..
जुल्फों से पलकें झपकाए जाते हो..३
वजूद समेट..खुद को भूलाये बैठे हैं..
खबर नजाकत से..लिखते जाते हो..४..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
12/21/2009 11:22:00 PM
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दिले-मलाल..
...
"तन्हाईयों में उलझता जाता हूँ..
फ़क़त खुद को ही भूलता जाता हूँ..१
फिज़ा में लुटते रहे..बेबस गुल..
ख्वाइश-ए-फिज़ा मचलता जाता हूँ..२
हम-निशान होंगे दिल की राहों में..
चाहत-ए-खिंजा..भटकता जाता हूँ..३
सिमटता रहा..ता-उम्र उनके पहलू में..
गहराई-ए-रूह में उतरता जाता हूँ...४
ज़िन्दगी का आशियाना..जला ना देना..
किस्मत रोज़ नयी..उगलता जाता हूँ..५..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
12/21/2009 04:31:00 AM
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Sunday, December 20, 2009
'उम्मीद..'
...
"बताया जो हाल-ए-दिल..रुसवा हो गया..
मंज़र देखिये..अश्क का रंग गहरा हो गया..
मेहरो-वफ़ा अजमाने की कोशिश में..
दफातन..फलक का चाँद अवारा हो गया..
ज़िन्दगी का अक्स..गुजरा साहिल के पार..
उम्मीद का दामन भी तुम्हारा हो गया..!"
...
"बताया जो हाल-ए-दिल..रुसवा हो गया..
मंज़र देखिये..अश्क का रंग गहरा हो गया..
मेहरो-वफ़ा अजमाने की कोशिश में..
दफातन..फलक का चाँद अवारा हो गया..
ज़िन्दगी का अक्स..गुजरा साहिल के पार..
उम्मीद का दामन भी तुम्हारा हो गया..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
12/20/2009 07:28:00 AM
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ग़ज़ल..
आ जाओ..
...
"महबूब मेरे..
बस करो..
दुनिया की मजबूरी..
साँसों की नाइंसाफी..
बेगैरत रिवायतें..
आ जाओ..
आशियाना फिर सजाएं..
मिलकर..
ज़माने को भूलाएँ..
खुद खो जाएँ..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
12/20/2009 05:55:00 AM
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Friday, December 18, 2009
हयात..
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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12/18/2009 11:34:00 PM
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...
"थम जाए वो वक़्त नहीं..
जम जाए वो अश्क नहीं..
रम जाए वो लम्हा नहीं..
नम जाए वो नश्तर नहीं..!"
...
"थम जाए वो वक़्त नहीं..
जम जाए वो अश्क नहीं..
रम जाए वो लम्हा नहीं..
नम जाए वो नश्तर नहीं..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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12/18/2009 11:33:00 PM
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तारीख़..
...
"कह देना उन ग़ज़लों को..
यूँ मेरा मज़ाक ना बनाएं..
जिस शब तन्हाई मेरी होंगी..
रूह में सुलगती आहें होंगी..
तेरी इबादत से पाया है जहां..
तुझसे ही इनायत होंगी..
आऊँगा फिर से लौट-कर..जब..
कलम की दराज़ से तारीख़ होंगी..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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12/18/2009 11:32:00 PM
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