Wednesday, March 31, 2010
''प्याला-ए-उल्फत..'
...
"एक मुद्दत बाद..
ख्याल आया..
देखा है..
चाँद को करीब से..
खुदा कुछ हिचकिचाया..
जुल्फें रंगीली..
निगाहें नशीली..
क्या ऐसा है..
कायनात का..
सबसे हसीं फ़रिश्ता..
लबों से महके हैं गुल..
नजाकत से सरोबर..
आह..
प्याला-ए-उल्फत..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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3/31/2010 08:21:00 AM
7
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रूमानियत..
Sunday, March 28, 2010
'फौलाद की फाहें..'
...
"बहुत सहमी सी हैं..आहें मेरी..
हर वक़्त उलझती हैं..राहें मेरी..१
जब भी चलता हूँ..बाँध के कफ़न..
बारहां..जकड़ लेती हैं..निगाहें मेरी..२
ना तन्हा..ना बेबस..है जुस्तजू..
फ़क़त..अरमानों से जूझती हैं..बाहें मेरी..३
थक के बैठ जाऊं..वो पत्थर नहीं..
रगों में बहती..फौलाद की फाहें मेरी..४..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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3/28/2010 12:14:00 AM
11
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ग़ज़ल..
Saturday, March 27, 2010
'जुस्तजू..'
...
"नगमों से उलझते हैं..
लफ्ज़ इन दिनों..
बिखरे से जज़्बात हैं..
मेरी मय्यत पर..
बंदिशों का कफ़न बांधे..
रूह की साँसें..
उफ़न आयीं..
फ़क़त..
आँखों में..
फिर..
वही जुस्तजू..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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3/27/2010 03:42:00 AM
18
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Wednesday, March 24, 2010
'जुल्म-ओ-सितम..'
...
"तड़पती हूँ..
तरसती हूँ..
इन तौह्मतों से..
मचलती हूँ..
इल्ज़ाम है..
इतना-सा..
इक लड़की का..
जिस्म पाया है..
रूह में इबादत..
हर नफ्ज़ शुमार..
क्या मिट सकेगा..
कभी..
ये जुल्म-ओ-सितम..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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3/24/2010 01:31:00 AM
15
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Tuesday, March 23, 2010
...
"सिमटी है जुस्तजू इस कदर..
साहिल की बाहें..मेरी रहगुज़र..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
3/23/2010 09:22:00 AM
3
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Monday, March 22, 2010
' आँचल..'
...
"तरबतर रूह..
नम काज़ल..
ढूँढूं फिर..
नया आँचल..
मुश्किल है..
गुड़ का नमकीन होना..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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3/22/2010 09:08:00 AM
9
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Saturday, March 20, 2010
'हसरत..'
...
"डूबा हूँ जब भी...
ख्यालातों की आंधी में..
तेरे तस्सवुर ने दी है..
नयी हसरत..
शिद्दत से मिट जाने को..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
3/20/2010 03:42:00 AM
8
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रूमानियत..
Thursday, March 18, 2010
'जज़्बात..'
...
"नरम सफहों की..
बाँध गठरी..
रूह को तराशा फिर..
गुलों की महक..
इत्र हो जाती है..
बेजुबान अल्फाज़..
जज़्बात कई मर्तबा..
सुना जाते हैं..
रौशनी-ए-माहताब..
लूटा आई..
सुकूँ फिर..!!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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3/18/2010 10:31:00 AM
13
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मेहमां यादें..
'कलाई..'
...
"रवानी का जोश..
भिगो गया..
रूह को..
भीड़ में..
तन्हा छोड़ गया..
जुर्म था..
फ़क़त इतना..
बे-इन्तिहाँ..
बेख़ौफ़..
आफताब कसमसाया था..
गेसुओं की नरम कलाई से..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
3/18/2010 08:53:00 AM
2
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बेज़ुबां ज़ख्म..
Sunday, March 14, 2010
'सितारे..'
...
"हर्फ़ बिखरे हैं..
आज फिर..
मेरी रूह पर..
इस कदर..
सितारे चटकते हैं..
फलक के..
साहिल से जैसे..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
3/14/2010 03:27:00 AM
4
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Friday, March 12, 2010
...
"साहिल पर खेलती है..
माज़ी की मंजिल..
जुनूं चाहत का..
निभाता कौन है..अब..!"
...
"साहिल पर खेलती है..
माज़ी की मंजिल..
जुनूं चाहत का..
निभाता कौन है..अब..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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3/12/2010 02:33:00 AM
0
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Thursday, March 11, 2010
'लालिमा..'
...
"निकाला है..
आईना फिर..
तेरी चाहत का..
अरसे बाद..
लालिमा..
अब तक..
रखती है हुनर..
नज़रें बाँधने का..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
3/11/2010 06:10:00 AM
8
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Wednesday, March 10, 2010
'सफ़र..'
...
"कुछ दरख्त..
कभी सजते नहीं..
कुछ हसीं..
कभी पिघलती नहीं..
कुछ जाम..
कभी झलकते नहीं..
कुछ अश्क..
कभी मचलते नहीं..
बेबस होतीं है..
फ़क़त..
यादें..
चाह कर भी..
बेनाम..
बिन मंजिल..
सफ़र तय करती हैं..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
3/10/2010 10:08:00 AM
3
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' पथिक..'
...
"रुक कर..
थक कर..
लू के थपेड़ों से..
विफल नहीं होंगे..
जिस पथ पर..
बढ़ें हैं..
'स्वप्न' कभी..
निष्फल नहीं होंगे..
पथिक..
चलता रहे..
बढ़ता रहे..
कठिनाइयाँ मिलें..
या चुनौतियां..
चुभती हों..
शीशे की
ऊँचाईयाँ..
'प्रियंकाभिलाषी' का चरित्र..
सदा निखरता रहे..
पथिक..
चलता रहे..
बढ़ता रहे..
शंखनाद की गूँज..
दिनकर की भभूत..
उमंग मलती रहे..
तरंग पलती रहे..
पथिक..
चलता रहे..
बढ़ता रहे..!"
...
*इस चित्र का श्रेय हमारे मित्र, श्री ओमेन्द्र जी, को जाता है..!! यह उनके अद्भुत खजाने का एक अमूल्य रत्न है..!! धन्यवाद मित्र..!!
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
3/10/2010 04:38:00 AM
4
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Sunday, March 7, 2010
'निशां..'
...
"खामोशी गुड़-सी मीठी..
मरासिम बेगाने से..
वफ़ा-ए-कुल्ज़म..
छलका फिर..
मुद्दत के बाद..
कुछ तूफाँ..
निशां भूल जाते हैं..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
3/07/2010 10:11:00 AM
4
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'खामोशी..'
...
"खामोशी..
फिर झगड़ आई..
मुकद्दर से..
कैसा खंज़र है..
चाहत का..
ना खूं का निशां..
ना रवानी का काज़ल..!"
...
"खामोशी..
फिर झगड़ आई..
मुकद्दर से..
कैसा खंज़र है..
चाहत का..
ना खूं का निशां..
ना रवानी का काज़ल..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
3/07/2010 10:00:00 AM
4
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Saturday, March 6, 2010
'वफ़ा..'
...
"निकाल कर बैठा हूँ..
जब कभी..
यादों का पुलिंदा..
माज़ी की साँसों ने..
तपाया है..
आँखों की सिगड़ी को..
बहुत..
दस्तक दे आते हैं..
हर दफा..
नादां हूँ ना..
काश..
महसूस करता..
तुम्हारी रुसवाई..
मेरी वफ़ा से..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
3/06/2010 02:22:00 AM
5
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Thursday, March 4, 2010
''मेरा पहला आईना..'
...
"चाँद मेरा सिमटा रहा..
शब भर..
रूह की गहराई नापता रहा..
शब भर..
मोल फिज़ा का लगता रहा..
शब भर..
बारिश की वो पहली बूँद-सा..
मेरा पहला प्यार..
मेरा पहला रूमानी एहसास..
मेरा पहला आईना..!!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
3/04/2010 06:20:00 AM
6
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Wednesday, March 3, 2010
'लफ्ज़ बिखरे रहे..'
...
"लफ्ज़ बिखरे रहे..
अरमां सुलगते रहे..
आँसू सिमटे रहे..
खूं के कतरे जमे रहे..
कलम की स्याही भी..
सूख गयी..
ज़ख्मों को हवा दो कुछ..
नासूर झलकें..
रूह से अब..
आज फिर..
अधूरी रह गयी..
मेरी कहानी..
मेरा सामान..
सच..
लफ्ज़ बिखरे रहे..
दराज़ में..
शब भर..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
3/03/2010 06:56:00 AM
12
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'याद..'
...
"महका आँगन..
खुशनुमा साहिल..
खामोश जिंदगानी..
चलते-चलो..
कुछ लम्हे..
फ़क़त..
याद बन जाते हैं..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
3/03/2010 06:28:00 AM
8
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'मुकम्मल..'
...
"नाउम्मीदी की चादर..
रिश्तों को निचोड़ गयी..
जलते रहे..
सर्द रातों में..
इक आह..
मुकम्मल कर गयी..!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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3/03/2010 06:23:00 AM
1 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..
Monday, March 1, 2010
'लुका-छिपी..'
...
"हर शफ़क़ फैला है..
रंगों का मेला..
हर तरफ लगा है..
अरमानों का ठेला..
हर रूह खिला है..
अमन का रेला..
अब..
बस करो ना..
बहुत हुआ..
लुका-छिपी का झमेला..!!"
...
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
at
3/01/2010 08:28:00 AM
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