
...
"समझ सके जो..
रूह का शामियाना..
ऐसी..
मशाल चाहता हूँ..
तेरी इबादत में..
बिक जाऊँ..
ऐसा..
जुनूँ चाहता हूँ..
लम्हों के बादल..
फलक की मेहँदी..
ऐसा..
तौहफा चाहता हूँ..
आफ़ताब-सा लोहा..
महताब-सी सुराही..
ऐसा..
दरिया चाहता हूँ..
ए-माज़ी..
तुझमें..
सिमटना चाहता हूँ..!!"
...
2 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
waah lajawaab ..kya chaahat hai...waah
धन्यवाद दिलीप जी..!!
Post a Comment