"अरमानों की सेज पर.. सिलवटें समेटती.. शब.. वस्ल की चाहत.. और.. जिंदगानी का कहर.. बाँध रखना.. उस संदूक के कोने में.. मासूम मोहब्बत.. यादों के पल.. और.. नमकीन गुड़ से लबालब.. कश्ती.. जो ना बह सकी.. इस तूफानी बरसात में.. फ़क़त..!!!"
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खूबसूरत अभिव्यक्ति
धन्यवाद अजय कुमार जी..!!
इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....
धन्यवाद संजय भास्कर जी..!!
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