Friday, July 16, 2010
'यथार्थ बन जाओ..ना..'
...
"मून्दतें हैं..
नेत्र..
यदा-कदा..
अभिभूत कर जाता है..
निर्मल-सा..
स्मरण तुम्हारा..
बारिश की पहली फुहार..
सुकोमल-सा..
स्पर्श तुम्हारा..
सौंधी मिट्टी का बिछौना..
पवित्र-सा..
ह्रदय तुम्हारा..
मेरी अंतर्ज्योति..
मेरी नाड़ी-तंत्र..
मेरी मधुर-स्मृति..
यथार्थ बन जाओ..ना..
आओ..
मुझमें समा..जाओ ना..!!"
...
1 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
भावपूर्ण रचना के लिये बधाई !
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
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