Monday, July 26, 2010

'उसूल-ए-कारवान-ए-शाहदत..'


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"दिल का दर्द उभर आया..
जब कभी..

ना समझा..
वाईज़ कभी..

गर कुरबां हो..
मिलता नहीं..
कूचा कभी..

अजीब है..
उसूल-ए-कारवान-ए-शाहदत..

मिलते हैं..
कब्र पे..
गुल सूखे कभी..!!"

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