समर्पित है..हमारे परम-प्रिय मित्र को..
...
"उठे हैं..
लाखों सवाल..
चले हैं खंज़र..
हुआ है मलाल..
बेकाबू धड़कन..
आँखें नम..
ग़मगीन नज़ारे..
निकला है दम..
गुमगश्ता था..
संवारा तुमने..
बेसहारा था..
संभाला तुमने..
बरसे गर..
बादल-ए-नाउमीदी..
रेज़ा-रेज़ा..
होगा..
आशियाना-ए-रूह..
तुमसे हैं..
रौशन..
तुमसे हैं..
साँसें..
तुमसे हैं..
*आब-ए-बका-ए-दवाम..
तुमसे हैं..
#सुर्खी-ए-गुलशन..
तुमसे हैं..
निशां..!!"
...
* आब-ए-बका-ए-दवाम = अंतहीन जीवन../Nectar that gives eternal life..
# सुर्खी-ए-गुलशन = बगीचे में फैले सुर्ख लाल रंग..
6 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
ज़िन्दगी को नये अर्थ देती रचना।
शानदार लेखन, दमदार प्रस्तुति।
सुन्दर रचना
बेहद
बहुत खूब प्रियंका जी...
कभी कभी....
धन्यवाद संजय भास्कर जी..!!
धन्यवाद शेखर सुमन जी..!!
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