"मखौल उड़ाता है..
जग सारा..
मदमस्त रहता हूँ..
शैय्या पर अपनी..
घाँव मरहम से भरे हैं कभी..??
विचार धुंधलाता हूँ..
असंमज में व्यतीत होती..
जीवन की अंतिम पंखुड़ियां..
जाने दो..
विषम परिस्तिथियाँ..
परस्पर प्रेम और दया के..
मिलते रहें अवसर..!!"
...
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...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
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क्या बात कही है..गहन विचार..लाजवाब।
bhut hi khubsurat shabdo ka samayojan....
हर शब्द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिये बधाई के साथ शुभकामनायें ।
कुछ व्यक्तिगत कारणों से पिछले 15 दिनों से ब्लॉग से दूर था
इसी कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका !
धन्यवाद सुषमा 'आहुति' जी..!!!
धन्यवाद संजय भास्कर जी..!!
कोई बात नहीं..आप आये बहुत अच्छा लगा..!! ऐसे ही आते रहा करें..!!
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