Monday, November 28, 2011

'मायावी आडम्बर..'





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"बहुत शोषण हुआ..
अंतर्मन चीर-हरण हुआ..

रात्री के पहले पहर..
सामाजिक परिवेश में..
कितने स्वप्नों का काल हुआ..

मुखौटे पहन दंभ दिखाते..
संबंधो के ठेकेदार..
कोमल पुष्पों का त्रास हुआ..

कितना विचित्र..
मायावी आडम्बर..!"


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Saturday, November 26, 2011

'रूह के छाले.. '



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"खफ़ा हूँ..
खुद से..

आ जला दे..
रूह के छाले..

बुझते नहीं..
जिस्मों के ताले..

क्या मुमकिन है..
अरमानों के पाले..!!!!"

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'बेच आया हूँ..'




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"ख्वाइश थी..
ना गुलज़ार हो..
आँगन कभी..

वादा निभा आया हूँ..
आज फिर..
खुद को बेच आया हूँ..!!!


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Saturday, November 19, 2011

'सच..'

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"झूठी रिवायतें..
फ़रेबी चाहतें..
यूँ भी..
सच बिकता कहाँ..!!!"

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Friday, November 18, 2011

'ये रतजगे..'





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"ये रतजगे..
ये जन्मदिन के तोहफे..
होते कारवां शुरू तुमसे..
ये जिस्मों के रेले..

बेइन्तिहाँ मोहब्बत तुमसे..
बेशुमार सुर्ख बोसे..

सुनो जां..
करते हो ना..
तुम भी..
मेरे जैसे..
हर शब का इंतज़ार..!!!!"


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Wednesday, November 16, 2011

'तमगा-ए-गद्दार..'



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"क्यूँ जिस्मों के रेले..
रूह के मेले हो जाते हैं...

निभा ना सको..
गर..
चाहतों के रिश्ते..
क्यूँ बेगाने..
इलज़ाम लगा जाते हैं..

क्यूँ ख्वाइशों को..
झूठे नकाब पहनाते हैं..
तोड़ के दिल..
तमगा-ए-गद्दार सज़ा जाते हैं...!!!!!"

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Friday, November 11, 2011

'निर्मल स्याही..'






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"लिखती है कलम..
जब कभी..
ह्रदय के ताल..

चख लेते हैं..
सुमन की गर्मी..
और..
प्रश्नों की नरमी..

झुरमुट प्रकाश में..
निर्मल स्याही से..
मिलना गले..
किसी दिन..

दर्शनाभिलाषी --

कुछ तरबतर अश्रु..
कुछ अपरिचित स्मृतियाँ..
और..
कुछ बूँदें..
निर्मोही तेल की..!!!"

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Wednesday, November 9, 2011

'चाहत मेरी..'



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"माँगता रहा..
ता-उम्र..
चाहत मेरी..
ना भर दामन उसका..
आज फिर गिरा आया हूँ..
हाँ..
आज फिर..
अपना ईमां..!!"


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Tuesday, November 8, 2011

'हिसाब लगायें..'




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"बर्बादी का सबब..
साथ लाया हूँ..
जिस्मों को तौलने..
रूह का काँटा लाया हूँ..

तुम्हारा आसमां थोड़ा फीका है..
मेरी ज़मीं थोड़ी गमगीं है..

आओ..
ज़रा बैठ हिसाब लगायें..

क्या खोया..
क्या पाया..

कुछ कदीम जज़्बात..
कुछ सुलगते अरमान..

और..
कुछ तेज़ कदम..
मेरी रूह-से-तुम्हारी रूह तक..!!!"


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Sunday, November 6, 2011

'नज़र-ए-महताब..'


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"गुज़रतीं हैं साँसें..
यादों के गलियारे से..
जब कभी..

वफ़ा के साये..
झाँकते हुये..
छू जाते हैं..
अफ़साने कई..

वक़्त के पहिये..
लगाते हैं..
यकीं के तम्बू..

इठलाती पुरवाई..
लूटाती है..
साज़ कई..

ना सज़ा मिले..
मोहब्बत की कभी..


कुछ अल्फ़ाज़ यूँ भी..
नज़र-ए-महताब..
कूचा-ए-यार..!!"


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