Tuesday, November 8, 2011
'हिसाब लगायें..'
...
"बर्बादी का सबब..
साथ लाया हूँ..
जिस्मों को तौलने..
रूह का काँटा लाया हूँ..
तुम्हारा आसमां थोड़ा फीका है..
मेरी ज़मीं थोड़ी गमगीं है..
आओ..
ज़रा बैठ हिसाब लगायें..
क्या खोया..
क्या पाया..
कुछ कदीम जज़्बात..
कुछ सुलगते अरमान..
और..
कुछ तेज़ कदम..
मेरी रूह-से-तुम्हारी रूह तक..!!!"
...
Labels:
दास्तान-ए-दिल..
11 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
behtreen lekhan ka aandaaj....
bahut khub..
jai hind jai bharat
वाह!
वाह,क्या बात है,
रूह से रूह तक पहुंचना हो तो वहाँ कैसा हिसाब किताब...कौन सा खोना -पाना ???...लिखा अच्छा है ...सबसे खूबसूरत लाइन है..... "जिस्मों को तौलने रूह का काँटा लाया हूँ "
बहुत खूबसूरत ..
एहसास का सफ़र पर हिसाब-किताब से परे होता है न !
wah !!!
Hisab lagane wali baat behad pasand aayi...
www.poeticprakash.com
बहुत सुन्दर
खोया पाया का हिसाब लगाने में ज़िन्दगी के अनमोल दिन न गवाएं जाएँ
धन्यवाद सजन अवारा जी..!!
धन्यवाद यशवंत माथुर जी..!!
धन्यवाद प्रकाश जैन जी..!!
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