Wednesday, November 16, 2011
'तमगा-ए-गद्दार..'
...
"क्यूँ जिस्मों के रेले..
रूह के मेले हो जाते हैं...
निभा ना सको..
गर..
चाहतों के रिश्ते..
क्यूँ बेगाने..
इलज़ाम लगा जाते हैं..
क्यूँ ख्वाइशों को..
झूठे नकाब पहनाते हैं..
तोड़ के दिल..
तमगा-ए-गद्दार सज़ा जाते हैं...!!!!!"
...
Labels:
बेज़ुबां ज़ख्म..
13 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
behtareen....
kyun khwahishon ko
jhoothe nakab pehnaate hai...
बहुत सुन्दर सृजन!
अगर ..इन क्यूँ का जवाब मिल जाए तो कोई परेशान ही न हो...तुम्हें कभी मिले ..तो बताना .
सुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई
गहरे भावो की सुन्दर प्रस्तुती.....
रिश्तों को निभाने की कोचिच तो करनी ही चाहिए ... अच्छा लिखा है ...
बहुत बढि़या।
धन्यवाद प्रकाश जैन जी..!!
धन्यवाद दी..!!
धन्यवाद सुनील कुमार जी..!!
धन्यवाद सुषमा 'आहुति' जी..!!!
धन्यवाद दिगंबर नासवा जी..!!
धन्यवाद सदा जी..!!!
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