Friday, May 11, 2012

'अभिलाषा..'



...


"चलने का प्रयोजन..
न पता था..
जिस क्षण दिया..
हाथ में हाथ..
किंचित ही भ्रम था..
अर्पित कर स्वयं..
मुक्ति-द्वार की अभिलाषा..
अवतरित हो हे-ईश..
बुझाओ तुच्छ-पिपासा..!!"

...

2 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

priyankaabhilaashi said...

सादर धन्यवाद मयंक साब..!!!

India Darpan said...

बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....


इंडिया दर्पण
की ओर से शुभकामनाएँ।