Friday, August 31, 2012
'खामोश कदम..'
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"अरसा हुआ..शब नहीं देखी..
साँसों ने हकीकत नहीं देखी..१
बेजुबान ही रहे..फरेबी अरमां..
वाईज ने मल्कियत नहीं देखी..२
अनजान मंजिल..खामोश कदम..
खंज़र ने शोखियत नहीं देखी..३
माहताब-सा हुनर कहाँ रकीब..
मुद्दतों से नसीहत नहीं देखी..४..!"
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ग़ज़ल..
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