Wednesday, July 17, 2013
'तखल्लुस..'
...
प्रिय..
तुम क्या गए, मेरी ज़िन्दगी ही बदल गयी..दिन की खुरदुरी मीठी धूप और शाम की मखमली चाँदनी सब अपना वजूद खो बैठे..!!! निशाँ तुम्हारे इस जिस्म पर खुद को सहलाने लगे..रूह पे काबिज़ तुम्हारी साँसें थरथराने लगीं..
'जुदा हुआ खुद से..
जिस रोज़..
वक़्त ये ही था.
ना दरिया सूखा था..
ना नासूर उफ़ना था..
फिर यूँ हुआ..
ज़िन्दगी की रेल में..
चल पड़े रिश्ते..
और मैं छूट गया..!!!'
जाओ..खुश रहना..आबाद रहना..!! तुमसे रोशन हैं मजलिस बेशुमार..
नाम भी नहीं रहा..तखल्लुस लिखा तो उंगलियाँ उठ जायेंगी..
चलता हूँ..!!
...
--मापने की मशीन की आवाज़..
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मेहमां यादें..
7 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
कुछ सिखाती समझाती कविता...... बहुत सुंदर भाव
बहुत खूब ...
Risto mai siskata swa... sunder
धन्यवाद दर्शन जी..!!
धन्यवाद संजय भास्कर जी..!!
धन्यवाद संगीता आंटी..!!
धन्यवाद सुरेन्द्र जैन जी..!!
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