...
"इक टुकड़ा चाँद का पाती हूँ..
बादल से लड़ आती हूँ..
अजीब घटनायें..अब घटने लगीं हैं..
ज़िन्दगी की धूप..खिलने लगी है..
जाओ..के तुम आज़ाद हो..ए-दोस्त..
गिरफ़्त फ़क़त..दम घोंटने लगी है..
जश्न-ए-इबादत मुश्किल हुआ..
मसरूफ़ियत कुछ मसरूफ रही..
तेरी आँखें इमां मेरा..टटोलने लगीं हैं..
सफ़र की पाबंधी..वक़्त की नज़ाकत..
तुम खुश रहना..दुनिया बदलने लगी है..
आँधियों के अपने रेले हैं..
ख्वाहिशों के अपने मेले हैं..
तेरी ख़ातिर उंगलियाँ..
शामो-सहर इबारतें लिखने लगी हैं..!!"
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--वीकेंड का अथाह ज्ञान..:-)