Saturday, April 25, 2015
'तिलिस्म छुअन का..'
...
"तूने विश्वास मुझमें जगाया है..
क्या सच में..मुझमें कुछ पाया है..
मैं समझता रहा..खुद को आवारा..
तिलिस्म छुअन का..संग काया है..
मिटा देते हैं..चलो..अभी..जमी हुई..
जिस्मी-तिश्नगी..आँखों में जो माया है..
दूरी के तलाशो न बहाने..ए-#जां..
ये ब्रांड..फ़क़त..हमने ही बनाया है..!!"
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--नाराज़गी वाला प्यार..रात्रि के दूसरे प्रहर..
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ग़ज़ल..
4 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (27-04-2015) को 'तिलिस्म छुअन का..' (चर्चा अंक-1958) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
हार्दिक धन्यवाद..मयंक साब..!!
सादर आभार..!!
खूबसूरत शेर और सहज कही मन की बात .....
सादर आभार..दिगम्बर नास्वा जी..!!
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