Sunday, May 31, 2015

'नमकीं समंदर..'






...

"आसूँ जो बहते हैं..नज़र नहीं पाते..
मेरे घर सैलानी परिंदे नहीं आते..१..

आया करो..फ़क़त बाँध गमे-गठरी..
सुनो..दिन गिरफ़्त के रोज़ नहीं आते..२..

जानता हूँ..साज़िशें औ' क़वायद उनकी..
नक़ाब पे उल्फ़त वाले रंग नहीं आते..३..

गुलज़ार रहे ताना-बाना..सुर-ताल के..
क़द्रदान..नमकीं समंदर में नहीं आते..४..!!!"

...

--रॉ स्टफ..

11 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

mohan intzaar said...

हर शेर उम्दा ...

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद मोहन सेठी 'इंतज़ार' जी..!!

priyankaabhilaashi said...

सादर आभार मयंक साब..!!

सुशील कुमार जोशी said...

वाह

रचना दीक्षित said...

वाह वाह वाह

दिगम्बर नासवा said...

हर शेर जुदा अंदाज़ का ... बहुत उम्दा ...

Himkar Shyam said...

बहुत ख़ूब

priyankaabhilaashi said...

हार्दिक धन्यवाद..सुशील कुमार जोशी जी..!!

priyankaabhilaashi said...

हार्दिक आभार..रचना दीक्षित जी..!!

priyankaabhilaashi said...

हार्दिक धन्यवाद..दिगंबर नास्वा जी..!!

priyankaabhilaashi said...

हार्दिक धन्यवाद..हिमकर श्याम जी..!!