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प्रियंकाभिलाषी..
दस्तक-ए-मेहमान..
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Priyanka Jain
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Saturday, August 29, 2015
'सफ़लता-मंत्र..'
...
"कम होने लगे..
शब्दों से संबंध..
तंज़ होने लगे..
जीवन के बंध..
चलते रहना..
रस्ते हों चंद..
पुकारे मंज़िल..
ख़ुमारी मंद-मंद..
गतिशीलता..निरंतरता..
सफ़लता-मंत्र..!!"
...
--चलते रहना..ए-पथिक..
Wednesday, August 19, 2015
'चाहत के दरवाजे..'
...
"चुप रहूँ तो बोलते हैं..
चाहत के दरवाजे..
आ जाओ..
के रात गहराने को है..
नहीं बाँधेंगे..
मोह के धागे..
लपेट लेंगे..
सीधे बाँहों में..
न होगी शरारत..
बस थोड़ी हरारत..
जल्द ही..
बंद कर आओगे..
ये चाहत के दरवाजे..
इस दफ़ा..
रस्ता अंदर वाला होगा..
नशा तुम पे सुनहला होगा..
चल ओढें..
जिस्मों के छाते..
बंद करें..
चाहत के दरवाजे..!!"
...
--रूमानियत के राग..<3 <3
Sunday, August 16, 2015
'जुदाई वाला लव-ऑल..'
...
"आज चलने लगें हैं..
मन के रिंग्स..
कुछ स्क्वायर हैं..
कुछ रैक्टैंगल..
दर्द में डूबे एक्स्ट्रा शॉट्स..
ख़्वाहिश वाला लॉन्ग-ऑन..
फ़रेबी सिली पॉइंट..
बेवफ़ा गली..
जुदाई वाला लव-ऑल..
हरारत वाला परफैक्ट टैन..
इस स्पोर्ट्स अकैडमी की बाउंड्री..
बुला रही..फ़िर हमें..
चले आओ..
के नल्लीफाय करने हैं..
ज़ालिम ओप्पोनैंटस..!!"
...
--स्पोर्ट्स आर गुड फॉर दिल वाली हैल्थ..
Friday, August 7, 2015
'मन की पाबंदियाँ..'
...
"आज..
मन की अपनी पाबंदियाँ हैं..
रूह की अपनी तड़प..
देह की अपनी धरा..
और..
दोस्ती की अपनी ज़रूरत..
मैं अब भी वहाँ हूँ..
बहती थीं..
प्रगाढ़ता की नदियाँ जहाँ..
समय के वेग ने..
भेजा होगा..
दिशा बदलने का नारा..
चप्पू ने भी तुरंत किया होगा..
सहमति का इशारा..
ज़िंदगी की मार से..
कविता लिखने लगी हूँ..
बारिश में तलाशने लगी हूँ..
मोती और पन्ने..!!"
...
--मोह का मरहम..जुदाई की रात..
Wednesday, August 5, 2015
'सींचते रहना..'
#जां
...
"जाने आपसे..
क्यूँ..
कब..
कहाँ..
कैसे..
जुड़ गयी..
उस बैड पैच के कारण..
या..
लेट नाईट..
स्मूथ कम्फर्टज़ के कारण..
उस टाईट हग़ के कारण..
या..
दिल की धड़कनों को..
ज़िंदा करने के कारण..
मेरे इंस्पिरेशन तुम ही हो..
चाहे..
शब्दों के खेल में..
या..
वाकिंग ट्रैक की रेल में..
आई लव यू द मोस्ट..
जानते हैं..
आप..
मुझे मुझसे बेहतर..
जानते हैं..
आप..
मेरी हर गलती पे..
डाँटते हैं..
आप..
फ़िर भी..
हर शब..
सुलाते हैं..
आप..
जाने कौनसा रूप..
कब प्यार करता है..
कब सर सहलाता है..
कब हिम्मत बंधाता है..
कब लक्ष्य दिखाता है..
कब भर-भर रुलाता है..
कब दर्द अपना छुपाता है..
मुझे मोहब्बत है..
बेइंतिहां..
न कहूँ कभी..
समझ लेना..
सुनना चाहती हूँ..
तुम्हें..
तुम्हारी बाँहों मे..
सींचते रहना..
रूह..
गोलार्द्ध..
और..
.......!!"
...
--#अदाएँ प्रेम वाली..
Tuesday, August 4, 2015
'मुट्ठी भर ओख..'
...
"प्रसंग मोहब्बत का था..
या
दर्द का..
रिश्ता नासूर का था..
या..
रंग का..
नूर जिस्म का था..
या..
आसमान का..
मैं तलाशता..
मुट्ठी भर ओख..
और..
बूँदों से लबरेज़ कसीदे..!!"
...
--बस यूँ ही..
Monday, August 3, 2015
'शुक्रिया..'
...
"रेतीले समंदर..
लाइवली किनारे..
एक लॉन्ग वाक..
एक स्ट्रांग बांड..
ख़ामोशी के फेरे..
लेते रहे हम..
धड़क-धड़क..
एंडलैस गूज़बम्ज़..
कभी नज़रें मिलाना..
कभी शरमा जाना..
बिन कहे..
सब पढ़ आना..
बिन सुने..
सब जान जाना..
बारिश की बूँदों से..
हौले-हौले मुस्कुराना..
होंठों का यूँ ही..
हलके-से कंपकंपाना..
मेरी रूह को..
लैवल कर जाना..
बिन क़ुओएशचन..
मेरे क़ुओएशचनज़..
अपनाते जाना..
कौन जानेगा..
तुम से बेहतर..
इस केओस में..
मुझे ढूँढ लाना..
थैंक्स..इस साइलैंट जर्नी पर..
मेरा साथ देने के लिए..
मुझे ख़ुद से इंट्रोड्यूज़..
करवाने के लिए..
मुझे..
तुमसे मिलवाने के लिए..
लव यू..!!"
...
--शुक्रिया..
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