Monday, August 3, 2015

'शुक्रिया..'





...


"रेतीले समंदर..
लाइवली किनारे..

एक लॉन्ग वाक..
एक स्ट्रांग बांड..

ख़ामोशी के फेरे..
लेते रहे हम..

धड़क-धड़क..
एंडलैस गूज़बम्ज़..

कभी नज़रें मिलाना..
कभी शरमा जाना..

बिन कहे..
सब पढ़ आना..

बिन सुने..
सब जान जाना..

बारिश की बूँदों से..
हौले-हौले मुस्कुराना..

होंठों का यूँ ही..
हलके-से कंपकंपाना..

मेरी रूह को..
लैवल कर जाना..

बिन क़ुओएशचन..
मेरे क़ुओएशचनज़..
अपनाते जाना..

कौन जानेगा..
तुम से बेहतर..

इस केओस में..
मुझे ढूँढ लाना..

थैंक्स..इस साइलैंट जर्नी पर..
मेरा साथ देने के लिए..

मुझे ख़ुद से इंट्रोड्यूज़..
करवाने के लिए..

मुझे..
तुमसे मिलवाने के लिए..

लव यू..!!"

...

--शुक्रिया..

4 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

ashutosh said...

Nice..beautifully written

priyankaabhilaashi said...

हार्दिक धन्यवाद..आशुतोष जी..!!

Pratibha ke panne said...

शब्दों की मर्मज्ञ तुम...
पकड़ लेती हो अर्थों को...
.
वे सांस लेते है...
हम जी लेते है...

साधुवाद....

priyankaabhilaashi said...

हार्दिक धन्यवाद प्रतिभा के पन्ने जी..!!