Tuesday, August 4, 2015
'मुट्ठी भर ओख..'
...
"प्रसंग मोहब्बत का था..
या
दर्द का..
रिश्ता नासूर का था..
या..
रंग का..
नूर जिस्म का था..
या..
आसमान का..
मैं तलाशता..
मुट्ठी भर ओख..
और..
बूँदों से लबरेज़ कसीदे..!!"
...
--बस यूँ ही..
Labels:
रूमानियत..
2 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
Bahut khoob 👍
शुक्रिया..पारुल जी..:)
Post a Comment