Monday, November 30, 2015
'कशिश..'
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"मेरे हर उस खालीपन को..भर जाते थे तुम..
उँगलियों से अपनी..किस्सा गढ़ जाते थे तुम..
दरमियाँ होतीं थी..अनकही बातें..औ' कशिश..
चहकता था..कुछ यूँ..रूह का इक-इक पुर्ज़ा..
गर्माहट से अपनी..साँसें निहार जाते थे तुम..!!!"
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Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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11/30/2015 10:48:00 AM
4
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बेबाक हरारत..
'मुहब्बत वाला हग़..'
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"दरार जिस्म पे थी..या..रूह की डाली यूँ ही विचलित हुई.. कुछ रिश्तों में साँसें ही साक्ष्य देतीं हैं.. अनगिनत रातों की स्याही..ग़म के रंग कैनवास पर छेड़तीं हैं..राग भैरवी..
'मैं' समेटती आवारगी वाले हिसाब..स्पर्श की सुगंध से सराबोर मुहब्बत वाला हग़..और मेरा सफ़ेद लिबास..!!"
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--कुछ बेहिसाब-से खाते..
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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11/30/2015 10:46:00 AM
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रूमानियत..
'रूह का हरा..'
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"मेरे मन का पीला..
औ' तेरी रूह का हरा..
बहुत सताता है..
दूरियों का ज़खीरा..
मिलो किसी शब..
ग़म पिघल जाएँ..
साँसों में घुले..
मुहब्बत कतरा-कतरा..!!"
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Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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11/30/2015 10:45:00 AM
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रूमानियत..
'लफ़्ज़ों की टोली..'
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"इश्क़ करना..
'मेरी ख़ता'..
अबसे न होगी..
लफ़्ज़ों की टोली..
तेरी ज़िन्दगी में..
मेरी आँख-मिचौली..
याद न करना..
मुझे कभी..!!"
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--सबब-ए-मोहब्बत..
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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11/30/2015 10:40:00 AM
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बेज़ुबां ज़ख्म..
'गिलाफ़ देह वाले..'
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"पल-पल संवरते..
कुछ आबाद लम्हें..
शबनमी साँसें..
रूहानी रूह..
नमकीं सौगात..
शब-भर..
रेशमी बाँहें..
दिन भर वो ज़ालिम हैंगओवर..
इतिहास मानिंद हमारा भूगोल..
तह खोलता-बांधता..
मौसम का राग..
गिलाफ़ देह वाले..
उतार दें..
चल आज..!!"
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Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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11/30/2015 10:38:00 AM
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रूमानियत..
'गल्लां दोस्ती वाली..'
#जानेमन..
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"अधूरी यादें..
अधूरी बातें..
वक़्त की कसती पकड़..
तेरी अपनी रेस्पोन्सिबिलिटीज़..
मेरी अपनी ड्यूटीज़..
गहरायें आंधियाँ..
सरसरायें सर्दियाँ..
मुहब्बत के परिंदे..
उड़ें-बैठें..
सवालों की रोड़ी..
बिछे-उखड़े..
गल्लां दोस्ती वाली..
होतीं रहेंगी..
पल-पल..
आज और कल..!!"
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Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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11/30/2015 10:37:00 AM
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दोस्ती..
'तुम्हारा मरून..'
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"मुझे भाता है..
तुम्हारा मरून..
वो बिंदास हँसी..
वो खनकती आवाज़..
वो मुझसे हर सवाल को बार-बार पूछना..
वो..हर बार कहना..
'क्या कहूँ..तुम्हें सब पता है'..
और हाँ..
वो एक सिंपल 'हग़'..
मुश्किलों के दौर में..
आज़ादी के छोर में..
रूह का ठिकाना 'वो' ही रहेगा..!!"
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--एहसास प्यार वाले..
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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11/30/2015 10:34:00 AM
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रूमानियत..
'मोहब्बत के फ़साने..'
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"इस गुलाबी सर्दी में..
तरसती उंगलियाँ..
तेरी छुअन..
आ किसी रोज़..
लफ़्ज़ों में ही लिपट कर आ..
बंदिशे यूँ भी..दरमियाँ..
ठहर सकतीं नहीं..!!"
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--एहसास प्यार वाले..
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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11/30/2015 10:30:00 AM
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बेबाक हरारत..
'प्यार वाले किस्से..'

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"तुम उल्फ़त लिखतीं..
मैं दर्द..
तुम सुकूं लिखतीं..
मैं अश्क़..
तुम बेबाक़ी लिखतीं..
मैं वहशत..
तुम पोर लिखतीं..
मैं नासूर..
तुम ज़िन्दगी लिखतीं..
मैं #जां..!!"
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--प्यार वाले किस्से.
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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11/30/2015 08:47:00 AM
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रूमानियत..
Saturday, November 28, 2015
'एहसासों का एहसान..'

#जां
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"कितना कुछ था कहने को..
इस धूप-छाँव के खेल में..
वो लंबे 'पौज़ेज़'..
वो तुम्हारी साँसों का दख़ल..
मेरी रूह का 'फ़ूड फॉर थॉट'..
वो तनहा रातों पे..
कब्ज़ा तुम्हारा..
उन बेशुमार एहसासों का एहसान..
शुक्रिया कहूँ तो..
'कोई एहसान नहीं किया..मैंने'..
कैसे करते हो..
सब कुछ मैनेज..
मेरे लिए तो..
हर वक़्त अवेलेबल..
सुना है..
रिलायंस का नया ऑफर..
'अनलिमिटेड कालिंग' दे रहा है..
ले लूँ फ़िर..
ये कभी न थमने वाला गैजेट..
मेरे दिल से तेरे दिल के..
नाते कुछ पुराने हैं..
डिस्टेंस से कम न हुए..
मोहब्बत के फ़साने हैं..!!"
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--एहसास प्यार वाले..
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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11/28/2015 07:42:00 AM
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रूमानियत..
Tuesday, November 17, 2015
'तड़पते एहसास..'

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"साज़िशों की देह..
कुछ सीक्रेट्स की फ़तेह
बिरही राग होंठ लगे..
कुछ तनहा रतजगे..
अंतस की कलाई..
कुछ नमक-ए-वफ़ाई..
चाँद की तन्हाई..
कोई ग़मगीन रुबाई..
उदासी के ज़ज़ीरे..
कुछ सुर्ख लकीरें..
एडजस्टमैंट का सुरूर..
उजले दिन का गुरूर..
तड़पते एहसास..
कच्चे टुकड़े..आत्मा वाले..!!"
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--तपती रही..साल भर..तुम लरजते रहे..
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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11/17/2015 10:40:00 AM
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रूमानियत..
'रतजगे नशीले-से..'

#जां
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"तेरे आने-जाने में सदियाँ थम गयीं..
तेरी लकीर से मेरी तक़दीर बदल गयी..
वो कौनसा जाम था..
जो नर्म किरचों से झांकता है..
रतजगे नशीले-से..
बेसुध साँसें..
ख़ुमारी अपने पंख पसारती..
उतर आई है..
बहुत गहरी..
ज़रा..
नज़र उतार दो..
इन सूखे होठों की..
हाँ..
तुम्हारे सुर्ख दस्तावेज़ों से..
लपेट दो न..
बोसों के गिलाफ़..
अंतस की तस्में..
हरी हो चलीं..
औ' मैं तलाशता..
निषेद्ध अलाव.!!"
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--कितने कच्चे रंग पकते..ज़ालिम #जां की गली..
Writer/शब्दों के कारोबारी..
priyankaabhilaashi
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11/17/2015 09:44:00 AM
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रूमानियत..