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"दफ़न होने को बेक़रार बैठी हूँ..
मय्यत पे अपनी..बेज़ार बैठी हूँ..
चाहा था..बेहिसाब बेख़ौफ़..तुझे..
साया-ए-उम्मीद..हार बैठी हूँ..
फ़िक्र न करना..ए-हमजलीस..
गिलाफ़-ए-रूह..मार बैठी हूँ..
करो रुकसत..ख्वाहिश-ए-सुकून..
सितारों के दामन..उतार बैठी हूँ..!!"
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--प्रिय मित्र की विदाई पे..उठते भाव कई.. वो कह गए, हम लिखते अच्छा हैं..