Tuesday, December 29, 2009
'इक मासूम जिद..'
...
जिद है हमारी..
सूरज चाहिए अब..
तारे की पच्छी..
यादों का मौसम..
गुलमोहर की आगोश..
रेत के घरोंदें..
सरसों के खेत..
बैलगाड़ी की सवारी..
वो कच्चे आम..
वो मीठी इमली..
वो सौंधी मिटटी..
होली के रंग..
रामलीला का रावण..
जन्माष्टमी का मेला..
काका की जलेबी..
ताऊ के लड्डू..
चाचा का वो..
मलाई वाला दूध..
काकी का हलवा..
चाची का अचार..
ताई के गुँजे..
क्या दे सकोगे..
मेरा गुजरा बचपन..
वो खिलखिलाती हँसी..
सावन के झूले..
माँ का आँगन..
मिश्री-सी लोरी..!"
...
5 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
बहुत सुन्दर, मगर गाँव की जमीन तो बिल्डर ने खरीदकर उसपर ऊँचे-ऊँचे फ्लैट खड़े कर दिए है !!! ???
हाय रे वो दिन फिर क्यों न आये ...सही में सब वापिस चाहिए ...पर अब सिर्फ लफ़्ज़ों में मिलता है यह सब ..
काश यह ज़िद पूरी हो जाय..बढ़िया अभिव्यक्ति..धन्यवाद!!
काश...वो दिन मिल पाते!!
यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।
हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.
मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.
नववर्ष में संकल्प लें कि आप नए लोगों को जोड़ेंगे एवं पुरानों को प्रोत्साहित करेंगे - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
आपका साधुवाद!!
नववर्ष की अनेक शुभकामनाएँ!
समीर लाल
उड़न तश्तरी
आप सब का बहुत-बहुत धन्यवाद..
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